क्या एआइ को चलाने के लिए हमारे पास पर्याप्त बिजली है?स्वागत है आपका अगर आप अपने लैपटॉप के नीचे झुककर देखें तो संभावना है वो हिस्सा गर्म होगा। आपके लैपटॉप में ई मेल को डिस्प्ले करने से लेकर स्प्रेडशीट बनाने और कई ऐप्स को चलाने के लिए लैपटॉप करोड़ों कैलकुलेशन करनी पड़ती है,
जिसमें एनर्जी यानी ऊर्जा लगती है और यही वजह है कि जब आप देर तक काम करते हैं।वो लैपटॉप की बैटरी जल्दी डिस्चार्ज हो जाती है।
अब ज़रा कल्पना कीजिये दुनिया भर के उन लाखों करोड़ों कंप्यूटर्स की जो स्प्रेडशीट नहीं बना रहे बल्कि आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स यानी एआइ के लिए ऐल्गोरिदम बना रहे हैं।
इस एआइ की मदद से वो दवाइयाँ बनाई जा सकती है जिससे सभी तरह के कैंसर का इलाज भी हो सकता है। धरती के बढ़ते तापमान को रोकने में भी इससे मदद मिल सकती है।
और इतना ही नहीं ऐसे कई काम जो इंसान नहीं करना चाहते, वो भी एआइ की मदद से मशीनें कर पाएंगी। मगर एआइ को विकसित करने के लिए और करोड़ों कंप्यूटर्स को चलाने के लिए और उन्हें ठंडा रखने के लिए एयर कन्डिशनिंग के लिए विशाल मात्रा में ऊर्जा की जरूरत होगी।
तो इस हफ्ते में हम यही जानने की कोशिश करेंगे क्या? इ को चलाने के लिए हमारे पास पूरी बिजली है?
पाठ वन दुनिया को बदलता एआइ आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स या एआइ वो अत्याधुनिक या सूपर ऐडवान्स कंप्यूटर प्रोग्राम होते हैं, जो विशाल मात्रा में डेटा को प्रोसेसर।यानी वो सामान्य कंप्यूटर प्रोग्राम से कहीं ज्यादा पेंचीदा काम कर सकते हैं और उनकी डेटा प्रोसेसिंग क्षमता मनुष्य के दिमाग की क्षमता से कहीं ज्यादा जिसके चलते वो कई समस्याओं के समाधान निकालने में सफल हो रहे हैं।
हमारे पहले एक्स्पर्ट डॉक्टर मार्ग फैन राय में नाम सिडनी स्थित स्ट्रैटिजिक फ्यूचरिस्ट यानी वो भविष्य में किस प्रकार की टेक्नोलॉजी का विकास हो सकता है इसका अनुमान लगाते हैं और आकलन करते हैं। वो कहते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं में आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स या एआइ का असर।अभी से देखा जा रहा है विच इस?गूगल ने मेड जमीनी नाम का एआई प्रोग्राम बनाया है, जिसका इस्तेमाल मरीज की जांच करते समय डॉक्टर अपने सहायक के रूप में करते है। डीपमाइंड का ऐल्फा फोल्ड एक ऐसा एआइ प्रोग्राम है, जो ये पता लगाता है कि शरीर में प्रोटीन कैसे काम कर रहा है।
इसके इस्तेमाल से केवल बीमारियों का इलाज करने में ही मदद नहीं मिलतीबल्कि उन बीमारियों से बचने में भी सहायता मिलती है।डीपमाइंड क्या है? की ऑफिशिल इन्टेलिजेन्स प्रोग्राम अल्फा फोर्ड से चिकित्सा जगत में कई संभावनाएँ सामने आ रही है या ये हमें दुनिया की सबसे बड़ी समस्या यानी धरती के बढ़ते तापमान से निपटने में भी मदद कर सकता है? कैन सी आई ऑलरेडी हेल्प यू टुडे टू फाइब जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में हमारी मदद कर रहा है।हमारे पास अब ऐसे प्रोग्राम है जिसकी मदद से हम ये पता लगा सकते हैं कि प्राकृतिक आपदा कहा आएगी।
अब मौसम में आ रहे बदलाव का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। इससे हम लोगों को प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए पहले से सतर्क कर सकते हैं। इसके कई उदाहरण हमारे सामने है। अगर भविष्य की ओर देखें तों एआई का इस्तेमाल क्वांटम कंप्यूटरों के साथ किया जा सकता है।जिससे जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों को काबू में रखने में बड़ी मदद मिल सकती है।
आगे चलकर शायद ऑफिशियल्स ऊपर इन्टेलिजेन्स भी बना सकते हैं जो दुनिया के हर इंसान की जिंदगी बदल सकता है। है। ऐस आर्टिफिशियल सूपर इन्टेलिजेन्स समूची मानव प्रजाति से अधिक पेज और सक्षम होगा। यह संभावना जितनी डरावनी है।उतनी ही रोचक दी है। इससे दुनिया की पेंचीदा समस्याएं हल हो
एआई की मदद से न्यूक्लियर फ्यूजन करने और सोलर पैनलों को बेहतर बनाने में मदद मिल रही है। भविष्य में जब सूपर आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स विकसित हो जाएगा, तो हो सकता है कि हम उन चीजों से ऊर्जा बनाने में सफल हो जाये जो फिलहाल असंभव है।यह सुनने में अजीब जरूर लगे लेकिन अगर हम मनुष्य से अधिक इन्टेलिजन्ट चीज़ बना लेंगे तो कुछ भी संभव हो पाएगा। सूपर आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स की बदौलत सब कुछ इतनी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सकता है की दुनिया की सारी समस्याएं समाप्त हो सकती है।
पांच टू आई की उर्जा की जरूरत।निफ्टी हमारी दूसरी एक्स्पर्ट क्रॉफर्ड लॉस ऐंजिलिस स्थित सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में रिसर्च प्रोफेसर है और वो पृथ्वी पर एआई के बढ़ते प्रभाव का अध्ययन करती है। वो कहती हैं, अब हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में एआइ की मौजूदगी कई जगह दिखाई देती है।
फ़ोन को अनलॉक करने के लिए फेस डिटेक्शन से लेकर।स्पैम ईमेल की पहचान एआई की मदद से होती है। इसी की सहायता से भाषाओं का अनुवाद करने वाले प्रोग्राम बनाए जाते हैं। मगर मसला ये है की एआई प्रोग्राम को बनाने और संचालित करने वाले कंप्यूटरों को चलाने में भारी मात्रा में बिजली खर्च होती है।
एक अनुमान है कि साल 2027 तक एआइ अकेले उतनी बिजली का इस्तेमाल करने लगेगा।जितनी बिजली नीदरलैंड जितना बड़ा कोई देश इस्तेमाल करता है तो कॉमन स्टोरी इस दैट इट्स वेरी इन मटिरीअल सर ऑफ मैथमैटिकल को विकसित करने या इस्तेमाल करने के लिए बड़ी संख्या में मशीनों और कंप्यूटरों की जरूरत होती है जो एल्गोरिदम का इस्तेमाल करके करोड़ों कैलकुलेशन करते हैं।
पिछले दो तीन सालों में इन सुविधाओं के निर्माण में बड़ी वृद्धि हुई है।इस काम के लिए विशाल डेटा सेंटर बनाने पड़ते हैं, जिसमें सैकड़ों बड़े कंप्यूटर होते हैं। बड़े गोदामों के आकार की इन इमारतों में खिड़कियां नहीं होती, इन्हें ठंडा भी रखना पड़ता है। दुनिया में ऐसे नौ से 12।
जिसमें सैकड़ों बड़े कंप्यूटर होते हैं। बड़े गोदामों के आकार की इन इमारतों में खिड़कियां नहीं होती, इन्हें ठंडा भी रखना पड़ता है। दुनिया में ऐसे नौ से 12,000 डेटा सेंटर है। यहाँ एआई को चलाने के लिए शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिनसे काफी गर्मी भी पैदा होती है।
केट क्रॉस फ़िट कहती हैं कि आमतौर पर डेटा सेंटरनदी या तालाब जैसे पानी के स्रोतों के नजदीक बनाए जाते हैं ताकि उन्हें ठंडा रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की सप्लाई सुनिश्चित की जा सके। लेकिन पानी को पंप करने और कंप्यूटर्स को चलाने के लिए बड़ी मात्रा में बिजली की जरूरत होती है। जब कुछ मैं बिलीव आइस कुछ अनुमानों के अनुसार एआई दुनिया के बिजली के बजट का 8-10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल कर रहा है।
क्योंकि बहुत ज्यादा है।आगे एआई के लिए बिजली की जरूरत और बढ़ेगी जब जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल बढ़ेगा। जेनेरेटिव एआइ वो आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स है, जो हमारे साथ चैट कर सकते हैं, तस्वीरें बना सकता है।
सैंपल म्यूसिक की मदद से संगीत भी तैयार कर सकते।दावोस में साल 2024 की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में चैट जीपीटी बनाने वाली कंपनी ओपन एआई के प्रमुख सैम अल्टमैन ने कहा की एएआई के नए मॉडल पहले लगाए अनुमान से कहीं ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे।अरे, हाई इस हेड फॉर एनर्जी को एआइ एक ऊर्जा संकट की ओर बढ़ रहा है। जेनरेटर वे आई कहीं ज्यादा मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करेगा।
हमारे बिजली उत्पादन संयंत्रों पर पहले से ही सप्लाइ का दबाव है, जो और बढ़ जाएगा। अगर इस समस्या का हल नहीं निकाला गया और ऊर्जा के नए स्रोत नहीं बनाए गए तो समस्या गंभीर हो सकती है।दुनिया पहले ये कार्बन उत्सर्जन की वजह से जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है। ऐसे में बेहतर होगा की एआइ जलाने के लिए बिजली की जरूरत सौर ऊर्जा या दूसरे रिन्यूएबल या हरित एनर्जी से पूरी की जाए। अगर फिलहाल ये काफी नहीं है कीट क्रॉफोर्ड कहती हैं, फिलहाल तो ये चलाने के लिए बिजली की कमी कोपारंपरिक स्रोतों से तैयार की गई पिछले से ही पूरा किया जा रहा है। टेक्नोलॉजी उद्योग की बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा और थर्मल ऊर्जा के इस्तेमाल पर भी चर्चा चल रही है।
यहाँ तक कि बड़े डेटा सेंटर्स के पास परमाणु संयंत्र लगाने के बारे में भी सोचा जा रहा है। की इस क्रॉफर्ड ने कहा, जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए इस उद्योग को अधिक नैतिक तरीके से सोचना चाहिए।पार्ट थ्री बिजली।हमारे तीसरे एक्स्पर्ट है जो यूके स्थित एक सलाहकार कंपनी एनर्जी सिस्टम्स में आई मैनेजर हैं।
उनका कहना है कि बिजली के इस्तेमाल को देशों में लोगों के जीवन स्तर से जोड़कर भी देखा जा सकता है। कहते हैं जैसे जैसे देशों में खास तौर पर काम विकसित देशों में।लोगों का जीवन स्तर बढ़ रहा है, वहाँ बिजली की मांग बढ़ रही है यानी केवल ए आई ही नहीं बल्कि हम सबकी वजह से भी बिजली की मांग बढ़ रही है।
सभी से इंसाफ इस दिशा लॉक स्मॉल फ्लैट रि स्टे, बिकॉज़ लॉक्स, मोर, पीपल ऐक्ट, दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में लोगों की बिजली की जरूरत बढ़ रही है क्योंकि अब पहले से ज्यादा लोग एयर कन्डिशनिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसीलिए उन देशों को अपनी बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ानी पड़ रही है। 1980 के दशक की तुलना में बिजली का इस्तेमाल अब तीन गुना बढ़ गया है।
अगर हम इस जरूरत को पूरा कर पा रहे हैं, सिद्धांत के तौर पर देखा जाए तो पूरी दुनिया की बिजली की जरूरत पूरी की जा सकती है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर ये इतना आसान नहीं है। कहते हैं कि दुनिया भर में बिजली का उत्पादनएक जैसा नहीं है। कन्ट्रीज अनवर अली, हैज़, पावर ग्रिड आम तौर पर हर देश का अपना पावर ग्रिड होता है, मगर यूरोप के देशों के पावर ग्रिड एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यानी स्वीडन में हाइड्रो पावर से बनी बिजली को वाइरस के जरिए इटली और दूसरे यूरोपीय देशों को सप्लाई किया जा सकता है।
लेकिन दुनिया के दूसरे हिस्सों में ऐसा नहीं है।देशों के अपने अपने पावर ग्रिड है, मगर कई देशों में वो ठीक से पर्याप्त बिजली देश के सभी हिस्सों तक नहीं पहुंचा पाते।कई देशों में लोगों का जीवन स्तर बढ़ने से बिजली की मांग बढ़ी है, मगर साथ ही एआई को चलाने के लिए भी बिजली की मांग बढ़ी है।
साइमन का कहना है, जैसे जैसे एआइ के मॉडल और ज्यादा विकसित होंगे, ज्यादा शक्तिशाली होंगे, उनके लिए अधिक बिजली की जरूरत होगी। लेकिन दूसरी वजह ये भी है की लोग एआइ का ज्यादा इस्तेमाल करने लगेंगे।इससे उन्हें चलाने के लिए बिजली की मांग और बढ़ेगी। कुछ देशों में पहले से डेटा सेंटर देश की कुल बिजली का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल कर रहे हैं।
हम सर रियली ग्रेट एग्ज़ैम्पल इस एन आइलैंड अबाउट 30 पर्सन इसकी सबसे अच्छी मिसाल आइलैंड है जहाँ देश की कुल बिजली का 30% हिस्सा केवल डेटा सेंटर इस्तेमाल करते हैं।मगर ये बिजली केवल एआइ में इस्तेमाल नहीं होती बल्कि इसका इस्तेमाल हम विडिओ और म्यूसिक स्ट्रीम करने और क्लाउड कंप्यूटिंग में भी करते है।
आने वाले कुछ सालों में बिजली का इस्तेमाल 50% से भी ज्यादा बढ़ सकता है।बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कुछ देश भी ऊर्जा उद्योग में कदम रख सकते हैं। सैमसंग अफ्रीका के कई देशों के पास सौर ऊर्जा जैसे रिन्यूएबल एनर्जी की मांग को पूरा करने का अच्छा मौका होगा, लेकिन उन्हें बिजली की सप्लाई व्यवस्था में निवेश करना होगा।पार्ट फ़ोर अफ्रीका का उदय ये सुनने में विरोधाभासी लगे।
लेकिन अगर अफ्रीकी देश ज्यादा डेटा सेंटर्स को अपनी ओर आकर्षित कर पाए तो वो अपनी जनता को भी ज्यादा बिजली आपूर्ति कर पायेंगे। हमारी चौथी एक्स्पर्ट रोज़ मोती सो एनर्जी फॉर ग्रोथ हब नाम के थिंक टैंक की रिसर्च डायरेक्टर हैं। ये संस्था दुनिया भर में बिजली की किल्लत की समस्या सुलझाने के लिए शोध करती है।
उनका कहना है, फिलहाल तो अफ्रीका इस क्षेत्र में काफी पीछे। सन वन पर्सेन्ट ऑफ गोल्ड फिलहाल अफ्रीका की क्षमता दुनिया की कुल क्षमता का केवल 1% है। जीतने डेटा सेंटर केवल मुंबई में है उतने पूरे अफ्रीका में है। ऐमज़ॉन गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों के डेटा सेंटर दक्षिण अफ्रीका में है।नाईजीरिया में भी कुछ डेटा सेंटर है, डेटा सेंटरों की स्थापना का संबंध है, स्थानीय लोगों की इंटरनेट की मांग और डिजिटल गतिविधि से भी है।
रोज़ मुक्ति सुख का मानना है की अफ्रीकी देशों में डेटा सेंटर खोलने से वहाँ की बिजली संबंधी ढांचागत सुविधाओं में भी सुधार आएगा।पार्ट ऑफ मी वर्क इस टु सी दी ऑपर्च्युनिटी सो यू कैन ऐक्चूअली यूज़। अगर यहाँ पर डेटा सेंटर खोलेंगे तो वो बिजली के प्रमुख ग्राहक बन जाएंगे। इस धन का इस्तेमाल बिजली उत्पादन और सप्लाइ के पूरे नेटवर्क में सुधार लाने के लिए किया जा सकता है।
वहीं इससे स्थानीय उद्योगों को भी कोई खतरा नहीं होगा।जैसा की हमने एक्स्पर्ट से सुना। अफ्रीका में हरित ऊर्जा उत्पादन की बड़ी संभावना है। रोज़ मोती को कहती है कीनिया सहित कई पूर्वी अफ्रीकी देशों में सौर और पवन ऊर्जा के स्रोतों का विकास हो रहा है।
कई टेक्नोलॉजी कंपनियों ने अपने लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने के कड़े लक्ष्य रखें और उन्हें इस हरित ऊर्जा से ये लक्ष्य पाने में मदद मिले गी।सन वन थिंग दैट इस क्वाइट इंट्रेस्टिंग अबाउट अफ्रीकी डिटेल्स। इंटर बाजार की एक विशेषता यह है कि अमेरिकी कंपनियों के अलावा कई क्षेत्रीय कंपनियां भी यहाँ अपने डेटा सेंटर बना रही है।
आम लोगों को भी इससे फायदा होगा क्योंकि इन्टरनेट से फ़िल्में और संगीत स्ट्रीम करने की स्पीड बढ़ जाएगी क्योंकि ये कॉन्टेंट जितना दूर के सर्वर पर होता है।स्पीड उतनी कम होती है। क्षेत्र में ही डेटा सेंटर में ये सर्वर होंगे तो कॉन्टेन्ट तेजी से स्ट्रीम होगा।
स्थानीय कंपनियों को भी इससे डेटा स्टोरेज में मदद मिले गी रोज़ ये भी याद दिलाती है कि अफ्रीकी देशों में आम लोगों को बिजली की भारी किल्लत का सामना भी करना पड़ रहा है। ऐसे में डेटा सेंटर को बिजली बेचने से आए होगी, जिसका इस्तेमाल बिजली नेटवर्क में सुधार लाने में किया जा सकेगा।देखिये इन दोनों के बीच संतुलन बनाना भी बड़ा जरूरी है।
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर क्या एआइ को चलाने के लिए हमारे पास पर्याप्त ऊर्जा है?फिलहाल तो लगता है हमारे पास इसके लिए पर्याप्त हो चाहे और भविष्य में अफ्रीका से भारत ऊर्जा प्राप्त करने की बड़ी सम्भावनाएं भी है हमारे सामने लेकिन सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कैसे? एआई को चलाने के लिए काम करने वाले डेटा सेंटर्स को दी जाने वाली ज़्यादातर बिजली रिन्यूएबल या हर एक स्रोतों से प्राप्त किया जाए ताकि इसका पर्यावरण पर बुरा असर ना पड़े।
साथ ही हमें इस पर नियंत्रण लगाने के बारे में भी सोचना पड़ सकता है की एआई का इस्तेमाल जरूरी काम के लिए करने के लिए किया जाए, क्योंकि एआइ के जरिये कॉमिक तस्वीरें बनाना या किसी की आवाज बदलने में भी काफी बिजली खर्च होती है। आगे चलकर एआई की बिजली की जरूरत पड़ सकती है।लेकिन जैसा हमने अपने एक्स्पर्ट से सुना, ये संभावना भी है कि सुपर एआइ के मॉडल हमारी कई समस्याओं के साथ साथ ऊर्जा की किल्लत की समस्या भी दूर कर सकते हैं।